Monday, 6 August 2012

उदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी है
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी है
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे,पूरा अपना काम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो

पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की, गतिविधि को परिणाम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो

तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है,सचमुच युद्ध विराम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो

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