उदित प्रभात हुआ
फिर भी छाई चारों ओर उदासी है
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी है
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे,पूरा अपना काम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो
पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की, गतिविधि को परिणाम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो
तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है,सचमुच युद्ध विराम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी है
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे,पूरा अपना काम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो
पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की, गतिविधि को परिणाम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो
तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है,सचमुच युद्ध विराम न समझो
अभी विजय मिली नही है तुम इसे अभी विश्राम न समझो
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