यह नोका अब तट छोड चली, न जाने यह किस और चली
यह बीच नदी की धारा है ,अब सूझता नही किनारा है
ले भले निगल यह धार मुझे ,अब लोटना नही स्वीकर मुझे ।।
अगर बुलंद है होसलें तेरे ,तो मंजिल भी आयेगी खुद ब खुद
चल अकेला इस राह में ,कारवाँ भी आयेगा खुद ब खुद ।।
मोंत के बाद अभिमन्यू और सुभद्रा संवाद ..........
=========================================
ना संस्कार में क्षरण रहे ,धुंधला ना कोई आवरण रहे
कोई मां हो गर्भ अवस्था में ,सुन्दरतम वातावरण रहे ।
चुक हुई तो जाने क्या -क्या दर्द उठाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ------------
डाल दिया चक्रव्यहू तोड़ने की जो कला का बीज
सोती हुई मुझको जवानी जगानी पड़ी ।
युद्ध हो रहा हो ,कोंन योद्धा शान्त रहता है
जोश था तो वीरता की आन निभानी पड़ी ।।
लोहा मान गया मेरे युद्ध कोशल का विश्व
ऊँगली सभी को दांतों तले दबानी पड़ी ।।
अनजानी गलती हुई थी आपसे परन्तु
कीमत मुझे तो जान देके चुकानी पड़ी ।।
जड़े रहे कमजोर तो पोधे को मुरझाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।।
जो भी वक्त में लिखा ,घटा वही है जिन्दगी में
कहता नही की आपका दुलारा नही था
शोर्य पुत्र व्यहू रीत जानते नही थे,मुझको भी शीश झुकाना गवारा नही था ।
युद्ध लड़ने गया वो तेरे गर्भ की ही सीख ,कोन कहेगा जवाब मेरा करारा नही था
सारे महारथी और तेरा ये अकेला शेर,मारा तो भले गया परन्तु हारा नही था ।
देख पराक्रम दुश्मन को भी शीश झुकाना पड़ता है ।।
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
व्यहू देखकर मजबूर हो गये थे सब,मेने योवन का जोश चुकने नही दिया
भले लावा खोलता रहा हो सबके दिलो में ,किन्तु होसले यूँ ही फुकने न दिया
नही थे पिता तो पुत्र ने संभाल ली कमान,बढता विजय रथ रुकने नहीं दिया
मार ही दिया अधर्म के धुरंधरों ने,किन्तु शीश धर्मराज का तो झुकने नही दिया
उम्र नही वीरो को अपना शोर्य दिखाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
पक्षधर हो चुके अधर्म और अनीति के जो,पैरो तले उनके जमीन हिला देता मै
चाहे तेरे गर्भ में मिला अधुरा ज्ञान,किन्तु धुवंस कर ही विरोधियों को हिला देता मै
कितने ही बलशाली अनुभवियों की फ़ौज।खाक में सभी का अहंकार मिला देता मै
योद्धा यदि षड्यंत्र करे ,अंत लजाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
शोर्य यश रथ पे पिता को स्वर्ण अक्षरो में, उसमे नवीन एक प्रष्ट जोड़ देता मै
यानि हमसे जो दुश्मनी किये हुए है भला,आप ही बताये उन्हें केसे छोड़ देता मै
साहसी पराक्रमी परम्परा निभाते हुए ,नीबुओ सा शत्रुदल को निचोड़ देता मै
सुनते हुए कहानी आप यदि सोती नही,आप की कसम चक्रव्यहू तोड़ देता मै
अनजानी गलती पर पीछे पछताना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
संग्रह से ..........आदित्य
यह बीच नदी की धारा है ,अब सूझता नही किनारा है
ले भले निगल यह धार मुझे ,अब लोटना नही स्वीकर मुझे ।।
अगर बुलंद है होसलें तेरे ,तो मंजिल भी आयेगी खुद ब खुद
चल अकेला इस राह में ,कारवाँ भी आयेगा खुद ब खुद ।।
मोंत के बाद अभिमन्यू और सुभद्रा संवाद ..........
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ना संस्कार में क्षरण रहे ,धुंधला ना कोई आवरण रहे
कोई मां हो गर्भ अवस्था में ,सुन्दरतम वातावरण रहे ।
चुक हुई तो जाने क्या -क्या दर्द उठाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ------------
डाल दिया चक्रव्यहू तोड़ने की जो कला का बीज
सोती हुई मुझको जवानी जगानी पड़ी ।
युद्ध हो रहा हो ,कोंन योद्धा शान्त रहता है
जोश था तो वीरता की आन निभानी पड़ी ।।
लोहा मान गया मेरे युद्ध कोशल का विश्व
ऊँगली सभी को दांतों तले दबानी पड़ी ।।
अनजानी गलती हुई थी आपसे परन्तु
कीमत मुझे तो जान देके चुकानी पड़ी ।।
जड़े रहे कमजोर तो पोधे को मुरझाना पड़ता है
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।।
जो भी वक्त में लिखा ,घटा वही है जिन्दगी में
कहता नही की आपका दुलारा नही था
शोर्य पुत्र व्यहू रीत जानते नही थे,मुझको भी शीश झुकाना गवारा नही था ।
युद्ध लड़ने गया वो तेरे गर्भ की ही सीख ,कोन कहेगा जवाब मेरा करारा नही था
सारे महारथी और तेरा ये अकेला शेर,मारा तो भले गया परन्तु हारा नही था ।
देख पराक्रम दुश्मन को भी शीश झुकाना पड़ता है ।।
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
व्यहू देखकर मजबूर हो गये थे सब,मेने योवन का जोश चुकने नही दिया
भले लावा खोलता रहा हो सबके दिलो में ,किन्तु होसले यूँ ही फुकने न दिया
नही थे पिता तो पुत्र ने संभाल ली कमान,बढता विजय रथ रुकने नहीं दिया
मार ही दिया अधर्म के धुरंधरों ने,किन्तु शीश धर्मराज का तो झुकने नही दिया
उम्र नही वीरो को अपना शोर्य दिखाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
पक्षधर हो चुके अधर्म और अनीति के जो,पैरो तले उनके जमीन हिला देता मै
चाहे तेरे गर्भ में मिला अधुरा ज्ञान,किन्तु धुवंस कर ही विरोधियों को हिला देता मै
कितने ही बलशाली अनुभवियों की फ़ौज।खाक में सभी का अहंकार मिला देता मै
योद्धा यदि षड्यंत्र करे ,अंत लजाना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
शोर्य यश रथ पे पिता को स्वर्ण अक्षरो में, उसमे नवीन एक प्रष्ट जोड़ देता मै
यानि हमसे जो दुश्मनी किये हुए है भला,आप ही बताये उन्हें केसे छोड़ देता मै
साहसी पराक्रमी परम्परा निभाते हुए ,नीबुओ सा शत्रुदल को निचोड़ देता मै
सुनते हुए कहानी आप यदि सोती नही,आप की कसम चक्रव्यहू तोड़ देता मै
अनजानी गलती पर पीछे पछताना पड़ता है,
मुझसे पूछो इसका कितना मुल्य चुकाना पड़ता है ।। ना संस्कार में क्षरण रहे
संग्रह से ..........आदित्य
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