Thursday 16 February 2012

अब हुनर आजमाए वो तीर आजमाए,हम

आओ दोस्तों हम अब हुनर आजमाए वो तीर आजमाए,हम जिगर आजमाए ..........................

जो भूभाग मेरे भारत का,मणि मुकुट कहलाता है ..........................................................
ऋषि-मुनियों का नंदन वन जिसे इतिहास बताता 
भारत की जिस पुन्य धरा पर अम्बर शीश झुकता है 
सूरज -चाँद  सितारों से पूजा का थाल सजाता है.........
स्वम महिर्षि कस्यप की जो तपो सादना का फल है 
जहा वितस्ता सिन्धु का संगम और पावन गंगा बल है 
जो शिवजी का पार जाट जो अमर नाथ कहलाता हो 
जहा वैष्णो देवी का प्रतिफ्ल्ल हवा का आंचल हो ...........
इस धरती पर जिसे देवता लाय सुंदर डोली में 
और वरदान स्वरूप दे दिया यह स्वर्ग हमारी झोली में 
मत भूलो ये स्वर्ग धरा देवताओ की ख्याति है 
उत्तर-पश्चिम की सीमा पर इस भारत की छाती है .........
भारत का अभिभाज्य अंग हम कभी नहीं होने देगे 
एक और काबुल या तिब्बत उसे नहीं बनने देगे 
अपने जिगर का खून पिलाकर माँ ने जिसे सवारा है
भूल न जाये फिर दिल्ली पूरा कश्मीर हमारा है ..........
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जिस घाटी को केसर अपनी खुसबू से महकाता था 
नीलाम्बर इन पिंडो से पर्वतों को खूब सजाता था 
जब डल झील के नीले जल में कोई चाँद नहाता था 
तो चिनार भी लहरों का चुम्बन लेने झुक जाता था .......
भूल गया है अब चिनार क्यों लेना लहरों का चुम्बन का 
क्यों किसने समसान बना डाला भारत का नंदन वन 
वहा किसी को कभी किसी से किसी तरह भेद न था 
एक दूजे के सब साथी थे एक दूजे की बाधा में ,,
उनके लिए कोई फर्क न था, रजिया में और राधा में 
फूलो की छाती छलनी कर दी अब फूलो के खरो ने 
इस पग सुंदर वन नगरी डूबी है अंगारों में 
मोसम बदले हवा न बदले प्रक्रति को स्वीकार नहीं 
मर-मर कर जीना भारत की संस्क्रति को स्वीकार नहीं ..........
सूरज की किरणों के आगे कब टिकता अँधियारा है 
भूल न जाये फिर दिल्ली पूरा कश्मीर हमारा है 
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लहू लुहान है घाटी घायल हुआ किनारा झेलम का 
जहाँ बहारे गाती थी वहाँ आज स्वर है मातम का 
तम को किसने दिया है बल अब प्रशन नहीं उठता भ्रम का 
कोई सूरज कभी समर्थन किया नहीं करता तम का.......
क्रूर आंधिया मचल उठी फिर से मजहबी जनून की 
समसिरे प्यासी है बेबस इंसानों के खून की 
सरेआम क्यों सुबह शाम सामूहिक नर संघार हुए 
अपनी ही धरती पर हिन्दू फिर काफ़िर एक बार हुए 
महिलाओ की लाशो से भी बलात्कार जब होते थे 
घाटी के पथर भी छाती पिट-पिट कर रोते थे 
दोष सही था वो हिदू थे उनको प्यार था घाटी से 
माँ के लहराते आंचल और जन्म भूमि की माटी से
तलवारों से ही जवाब देना होगा तलवारों को 
अपने देश के अपनी कोम के मजहब के गदारो को 
वहाँ वादियों ने अब उग्रवादियों को ललकारा है 
भूल न जाये फिर दिल्ली पूरा कश्मीर हमारा है
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अ ध्रतराष्ट्रों इस धरती के कितने टुकड़े करवाओगे
कब तक एक भूल को अपनी बार-बार धोरावगे
और अभी इन विषधर सर्पो को  कितना दूध पिलाओगे 
तुष्टि कर्ण  के इस दाव पर कब तक देश लगाओगे
किये ना होते उग्रवादियों से समझोते दिल्ली ने 
अगर ना हजरत बल में घुटने टेके होते दिल्ली ने 
तो ना देश प्रेम ही अपने देश में अपमानित होता 
और ना अपनी धरती पर कश्मीरी विस्थापित होता 
लाल चोक पर रोज तिरंगे झंडे फाड़े जाते है 
वन्दे मातरम गाने वाले जिन्दा गाड़े जाते है 
सविधान गणतंत्र दिवस पर वहा जलाया जाता है 
अमरनाथ के दर्शन को प्रतिबंद लगाया जाता है 
यह कलंक जो लगा देश पर नहीं मिटेगा पानी से 
घाव हमे अपमान के फिर भरने होगे क़ुरबानी से 
भारत की भारत माँ की आँखों में अमृत धारा है
भूल न जाये फिर दिल्ली पूरा कश्मीर हमारा है
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   आदित्य शर्मा 
  


        

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