पल-पल तेरा यों शरमाना, दिल में कोई नजाकत है
जो तुम मेरे पास खड़े हो, ये भी मेरी सराफत है
क्या है मेरी मजबूरी किसको अब मै बतलाऊ
दूर रहुगा लेकिन फिर भी तुझको मेरी जरूरत है
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तुम्ही पे मरता है ये दिल ,अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मो से बंदी है ,बगावत क्यों नही करता
कभी तुमसे थी जो शिकायत ,वो है आज जमाने से
मेरी तारीफ करता है ,महोबत्त क्यों नहीं करता
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पुकारे आंख मै चढ़कर, तो खून को खून समझता है
अँधेरा किसको कहते है,ये बस जुगनू समझता है
हमे तो चाँद तारो मै भी तेरा रूप दीखता है
महोबत्त की नुमाइश को अदाए तू समझता है
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आदित्य शर्मा
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