मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है ,
चोरों के संग भी पहरेदार नज़र आते है
ये अंधेरा कैसे मिटे , तू ही बता ऐ आसमाँ ,
रोशनी के दुश्मन चौकीदार नज़र आते है
हर गली में, हर सड़क पे ,मौन पड़ी है ज़िंदगी ,
हर जगह मरघट से हालात नज़र आते है
सुनता है आज कौन द्रौपदी की चीख़ को ,
हर जगह दुस्साशन सिपहसालार नज़र आते है
सत्ता से समझौता करके बिक गयी है लेखनी ,
ख़बरों को सिर्फ अब बाज़ार नज़र आते है
सच्च का साथ देना भी बन गया है जुर्म अब ,
सच्चे ही आज गुनाहगार नज़र आते है
मुल्क की हिफाज़त सौंपी है जिनके हाथों मे ,
वे ही हुकुमशाह आज गद्दार नज़र आते है
खंड खंड मे खंडित भारत रो रहा है ज़ोरों से ,
हर जाति , हर धर्म के, ठेकेदार नज़र आते है ?
सफ़ेद पोश मैं ये सब ठरकी ही नज़र आते है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (16-11-2013) को "जीवन नहीं मरा करता है" : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1431 पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मुहर्रम की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'