Monday, 23 January 2012

कलम कुछ कहती है .....................................................



कलम कुछ कहती है ...................................................
कुछ हाथ से उसके फिसल गया ,पलक झपक कर निकल गया 
फिर लाश बिछ गई ,लाखो की 
सब पलक झपक कर बदल गया 

जब रिश्ते राख में बदल गये, इंसानों का दिल दहल गया 
मै पुछ- पुछ  कर हार गया,क्यों मेरा भारत बदल गया 


मिटटी मै मिला दे ,जुदा हो नहीं सकता 
इससे ज्यादा ,मै तेरा हो नहीं सकता 
मेरी आवाज से ,एक बार आवाज तो मिला दे 
फिर देख इस जहाँ मे , क्या हो नहीं सकता 

हक़ मे किसी गरीब के बयान दे चलू, एक बेजुबान दर्द को जुबान दे चलू 
देना है जो भी आज , वो इम्तहान दे चलू 
सच की डगर पे ,अपना एक निशान दे चलू |

है समय नदी की बाढ, जिसमे सब बह जाया करते है 
है समय बड़ा तूफान ,पर्वत झुक जाया करते है 
अकसर दुनिया के लोग , समय मे चक्कर खाया करते है 
लेकिन कुछ ऐसे होते है , जो इतिहास बनाया करते है 
बाधे जाते है इन्सान,  कभी तूफान न बांधे जाते है 
काया जरुर बांधी जाती है ,पर कभी बांधे न इरादे जाते है 
आदित्य शर्मा 



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