भारत क्यों तेरी सांसो के स्वर आहत से लगते है,अभी जिआले परवानो में आग बहुत सी बाकी है
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है
जब तेरी नदियो की लहरे , डोल- डोल मदमाती है
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जो गुजरा वह तो कल था,अब तो आज की बाते है
और लड़े जो बेटे तेरे ,वो राज-काज की बाते है
चक्रवात पर ,भूकम्पो पर, कभी किसी का जोर नहीं
और चली जो सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बाते है
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अगर बात करनी है उनको कश्मीर पर करने दो
ये कुत्ते है इनको, उनके टुकडो पर ही पलने दो
वो समझोता ए लाहोरी यद् नहीं कर पायगे
भूल कारगिल की गद्दारी नई मित्रता घडवायगे
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चलो ये माना थोडा गम है,यह सभी को होता है
जब राते जगने लगती है, तभी सवेरा होता है
जो अधिकारों पर बेठे है,वह उनका अधिकार ही है
फसल काटता है कोई और बोता कोई और है
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आदित्य शर्मा
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