Monday 30 January 2012

जीवन को इस तरह जिए.............................

जब भी में सोलो पर चलता हूँ ,जब थोडा सा मनन करता हूँ 
सोले फिर होते है ऐसे ,बर्फीली वादी हो जेसे ।

जीवन को इस तरह जिए की जीवन स्वम एक वरदान बन जाये ।

यह सृष्टी कितनी सुंदर है,स्वर्गिग और मधुरिम है। सृष्टी का पहला सत्य,स्वम सृष्टी का होना और सृष्टी में हमारा होना है। सृष्टी को जब खुली आँखों से देखते है,तो सृष्टी का होता और सृष्टी में हमारे अस्तित्व का होना,हमारे लिए सत्य का पहला कदम है।
किताबे पढने का काम उनका है,जो बुद्धिमान है।किताबे बुद्धि को खाद देती है ,उसकी सहेली है ,बुद्धि का सिंचन होता है पर बुद्धि जीवन का अंतिम चरण नहीं,जीवन की समझ पाने का पहला आयाम है ।बुद्धि से शरूवात तो होती है,पर पूर्ण आहुति नहीं।                                                                                                                                                    
अध्यातम कोई शास्त्र  या वाद नहीं है ,जिसे पढ़ा जाये,की जिसका पंडित हुआ जाये,की जिस पर तर्क-वितर्क किये जाये,जिसे सिद्द किया जाये और साबित किया जाये।अध्यात्म तो एक ऐसी दृष्टी जिसे हम अंतर दृष्टी कहेगे 
जिसकी अंतर दृष्टी खुल गयी ,बुद्धि तो उसकी चेली बन गयी।
धरती पर पहला शास्त्र "जीवन " है ,दुसरा शास्त्र जगत है ,तीसरा शास्त्र प्रक्रति है और चोथा शास्त्र पवित्र किताबे है
प्रक्रति जहाँ हमे जीवन की गहराई प्रदान करेगी (अगर हम प्रक्रति के सानिध्य में रहे ) वही जीवन और जगत के रहस्यों से रु-ब-रु भी करवाएगी ।हम प्रक्रति के साथ जी कर तो देखे,आप ताजुब करेगे की फूलो को देखना केवल  देखना भर नहीं होगा, हम स्वम फुल की तरह खिलते जायगे ।
आप ध्यान से देखे आकाश को ,तो आपके अंदर से भीतर-बहार का भेद मिट जायगा,
हम सागर की उठती-गिरती लहरों को देखे, हमे प्रति छन हो रही परिवर्तनशीलता का आत्म बोध होगा, उड़ते पंछी को देखे ,तो हमारी धमनियों में भी मुक्ति का गीत फुट पड़ेगा।हम फूलो को चूमकर देखे, हमारे ह्रदय में प्रेम का सागर लहरा उठेगा,हम प्रक्रति का सोंदर्य देखे ,वह हमारे जीवन को कोमल और सहज बना देगा ।  

आदित्य शर्मा 

No comments:

Post a Comment