Saturday, 4 February 2012

गरीबों के लिये चावल कभी चमचम नहीं होते
सियासी लोग, ज़ख्मों पर कभी मरहम नहीं होते 

मुझे वालिद ने दी ये सीख संगत देखकर मेरी 
भले हों साथ रातो-दिन सभी हमदम नहीं होते 

सफ़र अपना मुहब्बत का, मुसलसल है हयाते-गम?
बहुत कमजर्फ मिलते है, मेहरबां सब नहीं होते 

करार आये मेरे अहसास के टूटे हुए दिल को

 तुम्हारी आँख के जाले कभी भी नम नहीं होते

शिकस्तें लाख खाई दोस्तों ने जाल बुन बुनकर
रकीबों कि रही सुहबत कभी बेदम नहीं होते 



~डॉ.महेंद्र अग्रवाल

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